घनीभूत इच्छा को दिशा दीजिए

सूत्र-2

घनीभूत इच्छा को दिशा दिजीए

क्रिया

आत्मा को उपलब्ध होना परम इच्छा है. नाभि से आसक्ति बढ़ाईये. लयबद्ध सांस के साथ नाभी पर अपना ध्यान केन्द्रित करिए.

व्याख्या

पहले सूत्र के रूप में मौन का अभ्यास जरूरी है. लेकिन जैसे ही आप मौन का अभ्यास करेंगे आपके विचार बहुत प्रबल हो जाएंगे. यह कहना कि मेरा मन साफ है, थोड़ा मुश्किल है हम सबके लिए. क्योंकि हम निरंतर अपनी अभिव्यक्ति करते रहते हैं इसलिए मन के विकारों का थोड़ीबहुत मात्रा में सफाई होती रहती है. जैसे ही हम अपनी अभिव्यक्ति रोक देते हैं तो दो तरह के परिणाम होते हैं. एक हमारी शक्ति का संचय होता है, दूसरा हमारे विकारों का भी संचय होना शुरू हो जाता है.

शक्ति और विकार एक साथ मिल जाएं तो क्या होगा? हम देखेंगे कि हमारी इच्छाएं बहुत प्रबल हो जाएंगी. आप ब्लाग लिखते हैं, चिट्ठीपत्री भेजते हैं, और भी न जाने क्याक्या कर्म करते रहते हैं. इन सब कर्मों से हमारे विचारों को एक रास्ता मिल जाता है. इसको आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि बांध का गेट खुला रहे तो पानी थोड़ीथोड़ी मात्रा में निकलता रहता है. उसमें वह ताकत कभी इकट्ठा नहीं होगी कि वह बांध की दीवार तोड़ दे. उतनी ताकत पाने के लिए आपको बांध का मुंह बंद करना पड़ेगा. हमारे जीवन में मौन यही काम करता है. मौन के महत्व पर मैं फिर कभी विस्तार से लिखूंगा.

अब दरवाजा बंद तो पानी के साथ कूड़ाकरकट भी इकट्ठा होगा. क्यों नहीं होगा क्या? यहां तक तो पहला चरण चलता है.

अब दूसरे चरण में घनीभूत इच्छा को दिशा देने की बात है.

जीवन में जो भी अच्छा कर्म करते हैं उससे एक सात्विक शक्ति का निर्माण होता है. लेकिन कभीकभार हम सबसे कुछ गलतियां हो जाती हैं. हमारी आदत है कि उन गलितयों को हम दबाकर रखते हैं. हमें लगता है कि दबाने से वे समाप्त हो जाएंगी. ऐसा होता नहीं है. अपनी गलितयों को जितना हम दबाते हैं उतना ही वे रोग के रूप में हमारे ऊपर हावी हो जाती हैं. शरीर में रोग के रूप में उभरती हैं, मन पर रोग के रूप में उभरती हैं. एक न एक दिन हमें उनसे मुक्ति पानी ही होगी.

अपने लिए इस मुक्ति अभियान का श्रीगणेश आप करिए. यही है घनीभूत इच्छा को दिशा देना. मान लीजिए आपका मौन प्रगाढ़ होता है और आपके मन पर दूसरे को सताने का विचार हावी हो जाता है या फिर आपका क्रोध बहुत बढ़ सकता है या फिर आप बहुत स्वार्थी हो सकते हैं. आपका व्यवहार ऐसा हो सकता है जो आपके लिए भी बहुत अनपेक्षित होगा. यहां परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है. आप अपने किसी इष्ट को याद करिए. जो भी मन में विचार आता है सब उसको समर्पित कर दीजिए. या फिर आप ऐसे सभी विचारों को हवनकुण्ड में होम कर दीजिए. यह क्रम कुछ दिन तक चलेगा. जब भी ऐसे विचार आयें जो आपके लिए अनपेक्षित हों तो उन विचारों को आप मानसिक रूप से या अपने इष्ट के चरणों में समर्पित कर दीजिए या फिर हवनकुण्ड में डाल दीजिए. अग्नि बहुत पवित्र होती है. हमारे सब पाप वहां जलकर भस्म हो जाएंगे. यही है घनीभूत इच्छा को दिशा देना.

गलती से यह मत करना कि क्रोध आ रहा है तो किसी से लड़ बैठे. फिर तो ध्यान भारी पड़ जाएगा. और इस गलतफहमी में भी न रहना कि ध्यान कर रहे हैं तो क्रोध नहीं आयेगा, माया नहीं बढ़ेगी या फिर लालच का घेरा नहीं पड़ेगा. उल्टे यह सब और तीव्र हो जाएगा. ठीक वैसे ही जैसे दिया के बुझने से पहले लौ एकदम से तेज हो जाती है. लेकिन यह भी सत्य है कि बिना इससे गुजरे तो कुछ मिलनेवाला है नहीं. बात पसंद न आये तो इस रास्ते मत चलना. कोई मजबूरी नहीं है. लेकिन चलना तो हिम्मत रखना कि इस तरह की परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा.

एक बात और. नाभि के साथ आसक्ति बढ़ाने पर हमारे विचारों की गति बहुत तेज हो जाएगी. क्योंकि नाभि हमारे प्राण का केन्द्र है. हमारे प्रारब्ध की सब यादें हमारी नाभि में ही सुरक्षित हैं. मष्तिष्क तो प्रोजेक्टर है, असली मशीन तो नाभि के भीतर है. इस विषय पर कोई जानना चाहे तो मैं उसे अलग से विस्तार से लिखकर भेज सकता हूं. हो सके तो इतना करिए.

हरि ऊँ तत् सत्

25 Responses

  1. vistar bheje

    dhanyavad

  2. mujhe rah dikhane ke liye dhanyavaad age bhi margdarshan kare

  3. Sir,
    1) Nabhi se kaise apne aap ko unnat kare? muze iss vishay me puri jankari dijiye.
    2) Tratak kaise kare? Jankari dijiye
    alakhbara.wordpress.com or
    my Email – svmalode@yahoo.co.in

  4. Sir,
    1) Nabhi se kaise apne aap ko unnat kare? muze iss vishay me puri jankari dijiye.
    2) Tratak kaise kare? Jankari dijiye
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    my Email – svmalode@yahoo.co.in
    Hari om

    • नाभि से उन्नत करने का सबसे बेहतर उपाय है श्वास प्रश्वास का केन्द्र नाभि को बनाईये. ऊपर से स्वांस नीचे नाभि तक और प्रश्वास भी नाभि से ऊपर. इस प्रक्रिया के दौरान अपनी नाभि पर केन्द्रित हो जाईये.
      एक दूसरा तरीका है,
      मन को खोलते जाईये, बुद्धि को साफ करते जाईये आपकी स्वांस अपने आप नाभि तक पहुंचती जाएगी.

  5. आपका अभिवादन,
    मै ध्यान में अपने मेरुदंड को आधार बनाता हूँ इसके निचले भाग से मस्तक के केंद्र बिंदु तक साँसों को नियंत्रित करने का प्रयाश करता हूँ कृपया मार्गदर्शन करे !
    मेरा इ मेल एड्रेस subodhk23@gmail.com

    • एक अवस्था ऐसी आयेगी जब शरीर शून्य हो जाएगा. सिर्फ होने का अहसास भर रहेगा. होना खत्म हो जाएगा. अब पता नहीं आप किस अवस्था में हैं लेकिन स्वांस प्रश्वास अगर मंद रूप से रीढ़ की हड्डी में अपने मूल रास्ते की ओर जा रही है तो यह अवस्था आयेगी.

  6. plz define (meaning in hindi) ; हरि ऊँ तत् सत्
    i search on internet but not found.
    plz send me ; असली मशीन तो नाभि के भीतर है

  7. यह जो असली मशीन है उसके बारे में थोड़ा सा बता चुके हैं. ज्यादा तो अनुभव में आयेगा. किसकी नाभि से क्या विस्फोट होगा और क्या कुछ प्रकट हो जाएगा इसका दावा करना मूर्खता होगी.

    नाभि अग्नि का केन्द्र है. यह जो मणिपुर चक्र है जिसे फायर चक्रा कहते हैं वह इसी नाभि के पिछले हिस्से में रीढ़ की हड्डी में होता है. अग्नि का अर्थ है भस्म करना. समझ लो भट्टी जल रही है. अब भट्टी जलेगी तो भाप बनेगा और इंजन चलेगा. तुम्हारे द्वारा किये गये कर्म संचित संचित हो रहे हैं जहां वहां एक भट्टी भी लगी है. यह भट्टी ठीक से काम करे तो कर्म संस्कार मिटते चले जाते हैं नहीं तो संचय होगा. यही संचय प्रारब्ध बनेगा और इसी प्रारब्घ से तुम्हारा आनेवाला कर्म निर्धारित होगा.

    इसलिए कहते हैं असली मशीन यहीं है. आत्मा का शरीर के साथ जहां पहला संयोग होता है न तो वह दिमाग है और न ही तुम्हारा शरीर. वह तुम्हारी नाभि ही है.

    अब इसे खोलने के खतरे बहुत हैं. इसलिए स्वाभाविक अवस्था में स्वास के जरिए नाभि स्थान को छूते रहने के साथ कुछ काम बन सकता है. बाकी हर एक का अपना भाग्य कि उसे योग्य गुरू मिले और कल्याण हो.

    हरि ऊं तत् सत्

  8. dhanyvad , sir kai kai minut tak mon dharan kiye rahta hu par mera dhayan bhang ho jata hai.kya kare
    regard: kundan kumar das

  9. pranam, mai ye janna chahta hu ki : mere dimak me faltu ya negetive vichar bahut aate h, jis se bahut tanav mahsus karta hu. Ak me ye chahta hu ki mera man aesa ho jaye ki mujhe sukh dukh me mujhe kuch bhi ahasaas na ho, kyoki mai rishto ko lekar bahut bhavuk hu.

  10. Nabhi aur sans ka kya len den hai?

  11. Maun dharan karane se ek shanti milati hai magar ander vicharo ka dher lag jata hai..aur vikar badh jane ka ek khatara mehsus hota hai.

  12. Naanhi shakti ke bare me bataiye guru ji to kripa hogi

  13. Nabhi ke bare me details dijiy guru

  14. Namskar,
    parbhavsheel hone ke liye koi upay sir?

  15. Mujhe job nhi mial rahi 2013 se abhi tak kya karu maira kuandli bhi nhi hai mai bhot pareshan

  16. Sir main upsc ki tayaari mein safalta chahti hu……………….main dimaag ko bilkul khaali kar postiivity ke saath sirf padhaai par dhyaan lagana chahti hu

  17. Mujhe vistaar bheje

  18. Mujhe bistar se janana hai

  19. namaskar sir,
    mene pahle b aap ko btayaa h k dhyan me mujhe aisaa anubhav hota h…
    lekin ab mere sharir me dhyan k baad gahri awastha me pawan Ki awaj sunai deti h jese koi bde tufaan Ki awaj or WO mere sharir me prawesh krtii h..
    me mandir gai thii kuch din pahle to aarti k samay me bilkul gahre dhyan me chalk gai sharir me bahut kampan hua or andar se hum hum Ki bahut tej awaj aane lgii.fiir or jor se aane lgii… fiir mere dono hath apne aap dhire dhire upar ashirwad Ki awastha me uth gye. fiir mera muh apne aap khula or bahut bhankar awaj aai chillai me… par WO meri aawaj nii thiii… mere hath b aise kaap rhe the k me unko dekh k hii Dr rhii this.. SBB kuch bahut alag lg rhaaa thaaa. or abb dhire dhiire or pawan b prawesh kr rhii h mere sharir me… aap mujhe btaiye k ye Jo pawan ka kahtii hu WO meraa bhraan h yaa sach h???

  20. sir kripya margdarshan kre… me jaannaa chahtii hu..

  21. Dhyan krne se mera jeewan badal gya . me dhyan k bina nahi rah sakti. Mujhe pta nhi tha k dhyan se bahut kuch hosakta h. Aisa pta hota to bahut pahle shuru kr deti..

  22. Me sadguru kese paau bs ye btaiye. Mujhe sadguru ki ajarurat h. Jo mere anubhav ko samajhe or mera margdarshan kre.. Es k liye me kya kru?

  23. Man me positive thinking continue karne,ke liye Kya Karana chahiy?

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